चाँद सा गोल चेहरा
रोटी भी उसके जैसी
पर कवि की कल्पना
अब नहीं पहुँचती
उसके चहरे की
और चाँद की
तुलना के लिए |
चाँद का असली रूप देख
कल्पना का घोड़ा
अब नहीं दौड़ता सरपट
उसकी ओर
क्यूँ कि वह जैसा दीखता है
वैसा है है नहीं
मन भय्बीत हुआ है
कहीं वह भड़क तो न जाएगी
उसकी तुलना चाँद से करने पर||
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वाह ! सुन्दर सृजन !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
धन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए
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धन्यवाद ओंकार जी |
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सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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