अपनी शुचिता सिद्ध करने के लिए
यह केवल महिलाओं तक ही सीमित क्यूँ ?
किसी कार्य को सही बताने के लिए |
कठिन परिक्षा केवल उन्हीं के लिए क्यों ?
क्या पुरुषों से कोई गलती कभी होती ही नहीं
जब होती है उसे अपना अधिकार मान लेते है
क्षमा माग पतली गली से निकल लेते है
उन्हें यूं ही छुटकारा मिल जाता है |
हर बात की सच्चाई साबित करने के लिए
महिलाओं पर ही नियम थोपे जाना
उन्हें दूसरे दर्जे की नागरिक समझना
है यह न्याय कहाँ का ?
सतयुग में सीता ने दी थी अग्निपरीक्षा
अपनी पवित्रता के प्रमाण के लिए
भूल हुई थी उनसे लक्ष्मण रेखा पार कर
यदि कहना माना होता इतने कष्ट न सहना होते
राम रावण युद्ध न होता |
पुरुष और महिला दौनों को ही जूझना पड़ता है
हर कठिन समस्या से गुजरना पड़ता है सामान रूपसे
कहने को महिलाओं की आजादी बढ़ी है
पर सच्चाई है कितनी |
बाहर महिला उन्नयन की बातें जो करता है
वही घर में महिलाओं पर अत्याचार करता है
दोहरी नीति अपनाता है
यह दोहरी मानसिकता क्यूँ ?
अग्नि परिक्षा देनी हो तो दोनो दें महिला अकेली क्यूँ ?
आशा
सार्थक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.02.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सुप्रभात
हटाएंसूचना के लिए आभार सर |
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2036...कुछ देर जागकर हम आज भी सो रहे हैं...) पर गुरुवार 11 फ़रवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंआभार सर सूचना के लिए |
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंयह पुरुष प्रधान समाज की थोपी हुई मान्यताएं हैं जिनकी कसौटी पर केवल नारी को परखा जाता ! पुरुष बड़े बड़े अपराध करके भी सीना तान कर अडिग खड़े रहते हैं ! इसके लिए कदाचित महिलायें ही ज़िम्मेदार हैं जो भगवान् के सामने नाक रगड़ रगड़ कर पुत्र की कामना करती हैं ! सार्थक प्रश्न उठाती शानदार प्रस्तुति ! सुन्दर सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |
बहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंसादर नमन...