जब मिलना चाहो फूलों से
काँटों पर से गुजरना होगा
काँटे है संरक्षक उनके
पहले उनसे निवटना होगा |
शूल की चुभन सहना सरल नहीं है
वह ह्रदय की व्यथा बढा देते हैं
पर उनपर से गुजरने की
असलियत समझा देते हैं |
उनके सानिध्य में आने से क्यूँ डरते हो
फूलों तक पहुँचने के लिए
उनसे मित्रता तो करनी ही होगी
नहीं तो यह प्रेम कहानी
अधूरी ही रह जाएगी |
आशा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंशानदार सृजन..
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम..
Thanks for the comment
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंप्रणाम आशा जी, क्या खूब लिखा है... फूलों तक पहुँचने के लिए
जवाब देंहटाएंउनसे मित्रता तो करनी ही होगी.. वाह
Thanks for the information
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंवाह ! फूलों पर काँटों के पहरे होना लाजिमी है ! काँटों के संरक्षण में ही फूल खिल पाते हैं वरना तो खिलने से पहले ही मसल दिए जाते ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |