ना रहा अरमां कोई तब
ना कभी कोई कमी खली
बस एक ही लक्ष रहा
कोई कार्य अधूरा ना रह जाए |
दिनभर की व्यस्तता
कभी समाप्त नहीं होती थी
बिश्राम तभी मिलता था
जब आधी रात बीत जाती |
भोर की लाली दस्तक देती
खिड़की के दरवाजे पर
पक्षियों का कलरव भी
आँगन में बढ़ने लगता था |
अब समय का अभाव नहीं है
जीवन की गति भी धीमी है
पर मस्तिष्क बहुत सक्रीय हुआ है
सोच का दायरा बढ़ा है |
बस यही विचार मन में आते हैं
क्या कुछ छूटा तो नहीं है ?
कोई कार्य अधूरा न रह जाए
व्यर्थ का अवसाद मन में न रहे
स्थिर मन मस्तिष्क रहे
चिर निंद्रा के आने तक |
आशा
बहुत सुन्दर प्रेरक रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ! यही सकारात्मक सोच जीवन को सही दिशा देती है ! बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |