हूँ एक प्रवासी पक्षी
समूह से बिछुड़ा हुआ
दूर देश से आया हूँ
पर्यटन के लिए |
बदले मौसम के कारण
राह भटका हूँ
समूह से बिछड़ गया हूँ
पर अब तक नहीं हारा हूँ |
नसीहत ली है मैंने जरूर
जब कहीं बाहर जाना हो
अपने समूह का साथ
कभी न छोड़ना चाहिए |
चाहे मन न मिले सब से
सामंजस्य आपस में करना सीखो
नहीं तो राह भटक जाओगे
जिद्द से परेशानी में उलझ जाओगे |
नया कोई न आएगा
तुम्हे राह दिखाने
यह सभी समझ जाएंगे
क्यूँ तुम सब से बिछड़े हो |
आशा
अत्यंत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसार्थक संदेश देती सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद संगीता जी टिप्पणी के लिए |
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 01 मार्च 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंआभार यशोदा जी मेरी रचना की सूचना के लिए |
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 01 -03 -2021 ) को 'मौसम ने ली है अँगड़ाई' (चर्चा अंक-3992) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आभार सहित धन्यवाद रवीन्द्र जी मेरी रचना की सूचना के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्योति जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंउचित नसीहत देती सार्थक रचना ! बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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