यह मेरी समझ से बाहर
है
मेरे भाग्य में क्या
लिखा है ?
जब भी आकलन करना
चाहूँ
स्वयं पर हंसी आती
है मुझे |
क्या फिजूल की बातें ले बैठा
विचारों की कोई सीमा
नहीं है
वे बहते हैं नदी के
जल के प्रवाह से
कभी रुकते हैं किसी
बड़ी बाधा से |
पर कभी उस का भी
प्रभाव नकार देते हैं
मनमानी करने की
जिद्द ठान लेते हैं
दोराहे पर खडा हूँ किसे अपनाऊँ
पर बड़ा दुःख दे जाते
हैं
यही मुझे सालता रहता है |
इस झमेले से कैसे निजात पाऊँ
खुद सम्हल कर पाँव बढाऊँ
जब खुद पर ही
नियंत्रण नहीं रहा मेरा
किसी और को क्या
समझाऊँ |
आशा
भाग्य बहुत बलवान , उसके आगे किसी कि नहीं चलती .
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंसंगीता जी टिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद |
बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंThanks for the information
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना जी ।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंभाग्य सच में बहुत बलवान होता है ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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