रमता जोगी
खोज रहा एकांत
ठहरे जहां
चंद पलों के लिए
भूले भूकंप
भयावह सुनामी
सोचता रहा
कब हो छुटकारा
उलझनों से
दुनिया की यातना
सह न पाता
कैसे बचे इससे
बैरागी मन
ठहर नहीं सके
भटका जाए
एक ही स्थान पर
हो कर
मुक्त
यहाँ के प्रपंचों से
है राह भूला
फिर नहीं भटके
सही दिशा हो
बंद आंखो से खोजे
वही मार्ग
हो
आशा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर और सटीक रचना।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19-03-2021 को चर्चा – 4,002 में दिया गया है।
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
सुप्रभात
हटाएंमेरी पोस्ट की सूचना के लिए आभार सर |
वाह वाह ! बहुत बढ़िया रचना ! इस विधा में महारत हो गयी है आपको ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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