16 मार्च, 2021

रमता जोगी

 


 
रमता जोगी

 खोज रहा एकांत

ठहरे जहां

चंद पलों के लिए

भूले भूकंप

भयावह सुनामी

सोचता रहा

 कब हो छुटकारा

उलझनों से

दुनिया की यातना

सह न पाता

कैसे बचे इससे

बैरागी मन

 ठहर नहीं  सके

भटका  जाए

एक ही स्थान पर

 हो कर  मुक्त

यहाँ  के प्रपंचों  से

है राह भूला

फिर नहीं भटके

 सही दिशा हो

बंद आंखो से खोजे  

वही   मार्ग हो

आशा 

 

8 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. सुप्रभात
      टिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19-03-2021 को चर्चा – 4,002 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      मेरी पोस्ट की सूचना के लिए आभार सर |

      हटाएं
  3. वाह वाह ! बहुत बढ़िया रचना ! इस विधा में महारत हो गयी है आपको ! अति सुन्दर !

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं

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