हुई पूर्ण फिर भी
क्यूँ खुशी नहीं
मुख मंडल पर
मुझे बताओ
मन में विचार क्या
पलने लगा
होता यदि मालूम
शायद जानू
मैं तुम्हें पहचानू
मदद करो
किसी काबिल बनू
जीतूँ विश्वास
गोरे सुर्ख गालों की
मुस्कान पर
लगी मेरी मोहर
किसी और से
मैं कैसे उसे बाटूं
आशा
सोचने को विवश करती सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए सर |
क्या बात है ! प्यारी आहना की प्यारी सी तस्वीर और बहुत ही सुन्दर रचना ! सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएं!
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार मीना जी |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंThanks for the comment sir
हटाएंबेहतरीन रचना बहुत ही सुंदर भाव
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंसुंदर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंबेहद प्यारी रचना,सादर नमन आपको दी
जवाब देंहटाएंThanks for the comment 7
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर