19 मार्च, 2021

मनमोहन

 


पहने पीताम्बर

श्यामल गात

अधरों पर मधुर

मुस्कान लिए

घूमते  गली गली

माखन खाते

खुद खाते खिलाते  

 ग्वालवाल को  

लिए साथ जब भी

एक गजब

कहानी बन जाती

गिला शिकवा

शिकायत तो  होते  

पर क्षमा की

गुहार भी  लगाते

 सीधे साधे हो  जाते

कोई कहता

माखन चोर कान्हां

नन्द किशोर

यशोदा के  दुलारे

 मोहन प्यारे

बाँसुरी बजा रिझाते

गोप गोपियां

रंग रसिया होते     

राधा बिना अधूरे

 मोहन होते

आशा

 

 

10 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१९-०३-२०२१) को 'मनमोहन'(चर्चा अंक- ४०११) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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    उत्तर
    1. सूचना के लिए आभार सहित धन्यवाद अनीता जी |

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  3. सादर नमस्कार।

    कृपया १९ को २० पढ़े।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर,भावपूर्ण,तथा कान्हा के रंग में रची बसी कृति ।कभी समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी भ्रमण करें, स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह ।

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  5. बहुत ही सुंदर रचना जय श्री कृष्णा

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