पहने पीताम्बर
श्यामल गात
अधरों पर मधुर
मुस्कान लिए
घूमते गली गली
माखन खाते
खुद खाते खिलाते
ग्वालवाल को
लिए साथ जब भी
एक गजब
कहानी बन जाती
गिला शिकवा
शिकायत तो होते
पर क्षमा की
गुहार भी लगाते
सीधे साधे हो
जाते
कोई कहता
माखन चोर कान्हां
नन्द किशोर
यशोदा के दुलारे
मोहन प्यारे
बाँसुरी बजा रिझाते
गोप गोपियां
रंग रसिया होते
राधा बिना अधूरे
मोहन होते
आशा
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण।
धन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१९-०३-२०२१) को 'मनमोहन'(चर्चा अंक- ४०११) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
सूचना के लिए आभार सहित धन्यवाद अनीता जी |
हटाएंसादर नमस्कार।
जवाब देंहटाएंकृपया १९ को २० पढ़े।
बहुत सुंदर,भावपूर्ण,तथा कान्हा के रंग में रची बसी कृति ।कभी समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी भ्रमण करें, स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जिज्ञासा जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत ही सुंदर रचना जय श्री कृष्णा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सवाई सिंह जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंवाह ! बहुत सुन्दर रचना !
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