दीवाना हुआ
तेरी छवि देखते
खोया ख्यालों में
बनाली है तस्वीर
मस्तिष्क में भी
क्यों हुआ हूँ अधीर
दोगे दर्शन
हम सब को साथ
तुम्हारे हाथ
होंगे मेरे ऊपर
ख्यालों में डूब
जाता
तन बदन
ठहर जाता मन
एक स्थल पे
जाना नहीं चाहता
जन्म ले कर
फिर से धरा पर
जन्म मृत्यु के
चक्र व्यूह में फंसा
मुक्ति मार्ग का
मैं रहा अनुरागी
दीवाना फिर भी हूँ
पाया है जिसे
बहुत जतन से
फिर से खोना
नहीं मंजूर मुझे |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (21-03-2021) को "फागुन की सौगात" (चर्चा अंक- 4012) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार सर |
बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद सर |
वाह । बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंवाह ! यह दीवानगी भी बहुत ही मनभावन और रचना भी ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
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