19 मार्च, 2021

दीवाना हुआ


                                                                      दीवाना  हुआ

तेरी छवि देखते

खोया  ख्यालों में

बनाली है तस्वीर

मस्तिष्क में भी 

 क्यों हुआ हूँ अधीर

  दोगे दर्शन  

 हम सब को साथ  

तुम्हारे हाथ

होंगे   मेरे ऊपर  

ख्यालों में डूब जाता

तन बदन

ठहर जाता मन   

एक  स्थल पे  

जाना नहीं  चाहता

जन्म ले कर

फिर से  धरा  पर

जन्म मृत्यु के 

चक्र व्यूह में फंसा 

मुक्ति मार्ग का    

 मैं   रहा  अनुरागी

 दीवाना फिर भी हूँ 

पाया  है  जिसे  

बहुत जतन से

 फिर से खोना

नहीं मंजूर मुझे |

आशा

 

 

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (21-03-2021) को    "फागुन की सौगात"    (चर्चा अंक- 4012)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुप्रभात
      मेरी रचना की सूचना के लिए आभार सर |

      हटाएं
  2. वाह ! यह दीवानगी भी बहुत ही मनभावन और रचना भी ! अति सुन्दर !

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: