कितनी बाते
कहने करने को
समय कम
होने लगता जब
बहुत कष्ट
देता जाता मन को
तुम्हारा दिल
कंटकों से भरता
पुष्प किसी का
भाग्य बदल देता
तुम्हीं अछूते
रह जाते उनसे
जानना चाहा
सजा किस कारण
मैंने किया क्या
मालूम नहीं हुआ
रहा अशांत
कभी खोजने
की भी
चाहत होती
कितना लाभ होता
जान कर भी
नहीं है कुछ लाभ
मन अशांत
होता ही रह जाता
आशा
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंसुन्दर.. कुछ भी कब क्यों होता है... यह कौन जान पाया है और जानकार भी क्या पा पाया है... सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 22-03 -2021 ) को पत्थर से करना नहीं, कोई भी फरियाद (चर्चा अंक 4013) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
वाह!आशा जी ,बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए सर |
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंविचारों की गहन अभिव्यक्ति।
धन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत बढ़िया ! आपको इस विधा में महारत हो गयी है ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति जी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दीपक जी टिप्पणी के लिए |
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