20 मार्च, 2021

कितनी बातें

 


कितनी बाते

कहने करने को

समय कम

होने लगता जब

 बहुत कष्ट  

देता जाता मन को

तुम्हारा दिल   

कंटकों से भरता  

पुष्प किसी का  

भाग्य बदल देता

तुम्हीं अछूते

रह जाते उनसे

जानना चाहा

 सजा किस कारण 

मैंने किया क्या   

मालूम नहीं हुआ 

 रहा अशांत

  कभी खोजने की भी

चाहत  होती   

कितना लाभ होता 

जान कर भी

नहीं है  कुछ लाभ 

मन अशांत 

होता ही रह जाता 

आशा 



17 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर.. कुछ भी कब क्यों होता है... यह कौन जान पाया है और जानकार भी क्या पा पाया है... सुन्दर रचना...

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 22-03 -2021 ) को पत्थर से करना नहीं, कोई भी फरियाद (चर्चा अंक 4013) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  3. बहुत सुन्दर।
    विचारों की गहन अभिव्यक्ति।

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  4. बहुत बढ़िया ! आपको इस विधा में महारत हो गयी है ! अति सुन्दर !

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  5. धन्यवाद दीपक जी टिप्पणी के लिए |

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