कितना पानी
हटा पाया अब तक
मन ने सोचा
तेरा उत्साह देख
आज की नारी
कमजोर थी कभी
अब नहीं है
छलके अश्रु मेरे
दौनों नैनों से
है सक्षम सफल
नहीं ज़रूरी
बैसाखी वाकर की
नहीं चाहिए
उंगली की पकड़
अपनी शक्ति
पहचान गई है
आज की नारी
समय का साथ पा
परख रही
है कितने पानी में
बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए सर|
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
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चोका विधा में बहुत ही सुन्दर सृजन ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना नई विधा से पहचान कराई हैं |
हटाएंआभार सहित धन्यवाद सर मेरी रचना की सूचना के लिए |
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
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