मेरी खुशियां
जब भी जन्म लेती
बहार आती
जब बहार आती
खुशी सी छाती
रहती वहीं खुशी
मस्ती रहती
खरीदी जातीं नहीं
बहती जाती
नदी की लहरों सी
देखे नखरे
बहती लहरों के
रंग खेलते
हरे भरे वृक्षों से
खिलते फूल
रंगबिरंगी डाल
दिखने लगी
सब एक साथ ही
जल की बूंदे
मन के सुकून को
देती विश्राम
होती है थिरकन
मेरे पैरों में
जब भी हवा चले
मन हो खुश
बालक सी आदतें
होती जीवन्त
देती अनूठी खुशी |
आशा
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंअन्तर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस की बधाई हो।
कहाँ से ले आती हैं इतनी सुन्दर कल्पनाएँ और फिर उन पर इतनी प्यारी सी अभिव्यक्ति ! बहुत बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंमनोहर रचना है Thanks You.
जवाब देंहटाएंआपको Thanks you Very Much.
बहुत अच्छा लिखते हाँ आप
हम लगातार आपकी हर पोस्ट को पढ़ते हैं
दिल प्रसन्न हो गया पढ़ के
.