31 मार्च, 2021

छाई खुशियाँ


                                                                        मेरी    खुशियां 

  जब भी  जन्म लेती

बहार आती 

जब  बहार आती  

खुशी सी छाती 

  रहती  वहीं खुशी 

 मस्ती रहती 

 खरीदी जातीं नहीं  

बहती  जाती 

नदी  की  लहरों सी

 देखे नखरे  

  बहती लहरों के 

रंग खेलते   

हरे भरे  वृक्षों से    

 खिलते फूल

रंगबिरंगी डाल  

दिखने लगी 

सब एक साथ ही   

जल की बूंदे   

 मन के सुकून को 

देती विश्राम    

होती है थिरकन 

मेरे पैरों में 

जब भी हवा चले 

मन  हो खुश 

बालक सी आदतें 

  होती  जीवन्त

 देती अनूठी खुशी  |

आशा 


5 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |


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  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
    अन्तर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस की बधाई हो।

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  3. कहाँ से ले आती हैं इतनी सुन्दर कल्पनाएँ और फिर उन पर इतनी प्यारी सी अभिव्यक्ति ! बहुत बढ़िया रचना !

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