04 अप्रैल, 2021

गुलाब का फूल

 


खिला गुलाब 

चल कदमी करता   

 सोचता रहा

 स्वयं  के  जीवन की

कहानी पर 

आज खिला   सुमन   

आया यौवन   

कभी कली रहा था 

पत्तों से ढकी

डालियों के  कक्ष से 

झाँक रहा था  

 कली से झांकती 

खिली  पंखुड़ी

लाल सुर्ख गुलाब 

एकल  नहीं

कंटक  रहते पास

रक्षा के लिए 

बचाते  अनजानों  से

तितलियों की

 भौरों  की छेड़छाड़

  भाती हैउसे  

 प्यार प्रेम  उनका

स्वीकार उसे   

 वायु बेग सहना

 मन से स्वीकार है  

विरोध नहीं

करने की क्षमता

अब न रही  

यौवन की समाप्ति 

 बढ़ती उम्र     

जीवन हुआ  सफल  

 स्वयम अर्पण    

 करने  का   निर्णय 

 आज का पुष्प 

कभी  हारूंगा नहीं |

आशा 





 

   

 

 

 

  

12 टिप्‍पणियां:

  1. धन्वाद टिप्पणी के लिए ओंकार जी |

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  2. उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |

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  3. सुप्रभात
    धन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (6-4-21) को "हार भी जरूरी है"(चर्चा अंक-4028) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
  5. कभी न हारने की मानसिकता ही पुष्प की शक्ति होती है । हमें उससे सीखना चाहिए । आपके नाम के अनुरूप ही आशा से परिपूर्ण है यह रचना । आभार एवं अभिनंदन ।

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  6. पुष्प सी ही मानसिकता सबकी हो जाए तो जग से अवसाद और विषाद सदा के लिए तिरोहित हो जाए ! बहुत प्यारी रचना !

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