नृत्य संगीत से सजा
है जीवन गीत
कभी कहीं तो गीत
गाता ही है
जिसमें रुझान नहीं
संगीत के प्रति
उसका जीवन है रूखा नीरस सा |
नृत्य से
आत्मसंतुष्टि मिलाती है
नियमित हो जाता है व्यायाम
तन मन में आजाती है स्फूर्ति
मन महक उठता है फूलों
की सुगंध सा |
भजनामृत में हो मगन भक्ति भाव में डूबते
नजदीक होते प्रभू के
सच्चे दिल से ध्यान करते
प्रभु को भी रहता
ध्यान ऐसे ही भक्तों का
जो दिल से सुमिरन
करते हर समय बैठते उठते |
भक्ति में जो सुख मिलता है चौसठ मिष्ठानों से नहीं
सच्चे मन से की सेवा
से अच्छा कोई कार्य नहीं
भूखे को भोजन देना
वस्त्र दान करने से बहुत पुन्य मिलता है
गौ धन की सेवा करने से बड़ा कोई पुन्य कार्य नहीं है |
सच्चा भक्त है जो
दिल से करे वे कार्य
जिन से परहित की
भावना जुडी हो
निस्वार्थ भाव से
किये कार्य मन को सुकून देते हैं
वे सब भगवान के बहुत नजदीक होते हैं |
आशा
बहुत सुंदर
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हटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जी बहुत बढ़िया। एक सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंप्रकाश जी धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
बहुत सुंदर। बिल्कुल सही लिखा हैं आपने।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंबहुत धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०८-०५ -२०२१) को 'एक शाम अकेली-सी'(चर्चा अंक-४०५९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुप्रभात
हटाएंआभार मेरी रचना को शामिल करने के लिए अनीता जी |
सुन्दर सृजन ! सार्थक अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका बहुत
हटाएंबहुत अच्छा संदेश दिया है आदरणीया दीदी। अनमोल वचन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका बहुत
हटाएंसुन्दर
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