एक नन्हां बालक एकटक
निहार रहा ध्यान से |
कर रहा था निरीक्षण
अंधेरी रात में व्योम के तारों का
खोज रहा निहारिका है क्या?
एक बार माँ ने ही
बताया था
जब कोई जाता है घर
भगवान के
रहने को मिलता एक तारा
घर जैसा
जगमगाता आसमान में घर जैसा |
मेरी
मां जब गई भगवान् के धर
वह मुझे साथ न ले गई
थी
कहा था तुम बाद में आना
पहले मैं सामान जमा कर
खाना बना लूं तब बुलालूंगी |
मैं कब से खड़ा हूँ बांह
पसारे
मुझे भी चलना है साथ घर तुम्हारे
मुझे वहां भी खेलने
दोगी बाहर मां
मना तो न करोगी किसी
बात के लिए |
मैं समय पर कर लूंगा गृह कार्य
किसी से झगड़ कर नहीं आऊँगा
तुम मुझे प्यार से
सुलाना रोज रात
कितनी रातें काटी मैंने तुम्हारी राह देखते |
यहाँ तक कि खोज डाली सारी गलियाँ
दिखा चमकते तारों का समूह
एक बहती नदी सा |
दीदी ने बताया आकाश गंगा में
तारों का समूह ऐसा दमकता
मानो ओस की बूदों का समूह चमकता
अपने घर के आसपास जैसा |
आशा
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना है कि
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति दी
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
जवाब देंहटाएंवाह वाह ! बालमन की थाह लेती बहुत ही मनमोहक रचना ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |