22 मई, 2021

आत्मकेंद्रित


वह दिन भी गुजरा बेचैनी में

कोई खबर न आई वहां से

 लंबा समय बीता था जहां  

अब कुछ  नहीं  रहा वहां

 सिवाय बुरी खबरों के |

अब अखवार के

 सारे पृष्ट भरे होते 

प्रारम्भ से अंत तक 

होती जन धन की  हानि से |

कभी प्राकृतिक आपदाओं 

के आगमन से

कभी मानव जन्य

 प्रकृति के अति  दोहन से |

मन  दुखित होता है

 ऐसे हादसों की जानकारी से

मन की रौशनी बुझ जाती है

बुद्धि कुंद हो जाती है 

साथ नहीं देती  | 

हम भी यदि  होते वहां

हम होते न होते 

 क्या हाल होता हमारा |

मैं हूँ आत्म केन्द्रित

 सब की सोच नहीं पाती

केवल खुद तक ही 

सीमित होकर रह जाती | 

जब भी कोई बुरी 

घटना सुनाई देती है

 उसी में उलझी रहती हूँ

कुछ भी अच्छा नहीं लगता

 बेचैनी बढ़ती जाती है |

आशा

9 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |

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  2. जो सबके बारे में हर समय सोचता हो वह आत्म केन्द्रित कैसे हो सकता है ! बहुत बढ़िया रचना !

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (22-05-2021 ) को 'कोई रोटियों से खेलने चला है' (चर्चा अंक 4073) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      आभार रवीन्द्र जी मेरी रचना की सूचना के लिए |

      हटाएं
  4. धन्यवाद शिव कुमार जी टिप्पणी के लिए |


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