थिरकते कदम
झूमते रहे
देखा न अवसर
उचित नहीं
कभी सोचना नहीं
अन्यों पर
सुख दुःख उनके
बांटना नहीं
क्या बीतेगी उन पे
सोचा न कभी
अपना स्वार्थ देखो
किससे जाना
है कितना कठिन
तुम्हें जानना
उसको पहचानो
मन चंचल
किसी का नहीं होता
पूरे समय
खुद व्यस्त रहता
सुख या दुःख
अकेले ही सहता
है राज यही
मन की प्रसन्नता
जन्म से नहीं
भाग्य से बढ़ कर
कुछ भी नहीं
हो हाथ सर पर
प्रभू की देन
थिरकेंगे कदम
हर बात पे |
आशा
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए ओंकार जी |
Y
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
सार्थक सन्देश देती प्रेरक रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए धन्यवाद |