26 जून, 2021

मैं हारी तुम संग नेह लगा ?


                                                                   दिन रात तुम्हारा

  गुणगान किया 

सिर्फ तुम्हारा ही 

एकाग्र चित्त  हो 

ध्यान किया है  |

फिर भी न आए 

 क्या कमीं रहा गई 

तुम्हें मनाने में 

 बिगड़ी बनाने में |

गरमी बीत गई 

सावन आया 

तुम भूले मुझे 

मैं  न बिसरा पाई |

|तुम्हारी यह बेरुखी 

मुझे रास न आई

इतना तो इंगित करते 

कमीं कहाँ रही मेरी अरदास में |

दिन रात की   भक्ति 

अपना सारा बैभव  छोड़ा 

अब तो हार गई हूँ 

क्या कमी रही है 

मुझसे तुम्हारे  नेह में |

किस लिए ठानी है 

रार तुमने मुझसे 

मैं तो हारी

 मनुहार तुम्हारी करके |

अब तक जान न पाई 

क्या गुनाह किया मैंने 

तुम संग नेह लगा 

हूँ तुम्हारी अनुरागी |

आशा 




9 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (22 -6-21) को "अपनो से जीतना नहीं , अपनो को जीतना है मुझे!"'(चर्चा अंक- 4109 ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  2. सुन्दर प्रस्तुति ! बहुत खूब !

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  3. सुप्रभात
    धन्यवाद प्रीती जी टिप्पणी के लिए |

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  4. सुप्रभात
    प्रीती जी टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं

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