सागर में आईं उत्तंग लहरें
तांडव मचा रखा है सब ने
भयावह तवाही हुई है
सारा सामान बहा है |
घर द्वार सब ध्वस्त हुआ
उस हादसे में
सर छुपाने को जगह नहीं
अब क्या करूँ |
सारी सुख सुविधा बहा ले गईं
रौद्र समुद्र की लहरें
एक ही झटके में
अब चिंता है
कैसे इस का सामना करूं |
फिर वैसी ही दशा होगी
पहले जैसी
जिसकी भी पहचान रही
रसूकदार हस्तियों से
वे उस पर महरवान हुए
जल्दी मदद मिली उस को |
निचले तपके का आदमी
रह गया खाली हाथ
बड़े प्रयत्न किये तब भी
कोई सहायता न मिली उसको |
अब सोच रहा है खड़ा खड़ा
आधी उम्र तो खर्च हो गई
पहले की स्थिति तक पहुँचने में
और कितनी परिक्षा लोगे ईश्वर |
आशा
सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
जवाब देंहटाएंसच है ! प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में आकर इंसान पूरी तरह बर्बाद हो जाता है और फिर दोबारा खड़े होने में सारी उम्र बीत जाती है ! सार्थक सृजन !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |