प्यार का इजहार 
है उम्र का तकाजा
कोई आश्चर्य नहीं है 
यह मानना हमारा है |
जिस पर आता है योवन 
वह अपने वश में नहीं रहता 
हाल बेहाल हुआ जाता
उन्माद मन में नहीं समाता  |
यही उसे ऎसी राह पर पहुंचाता
राह में चाहे कितने भी हों कंटक
वह सड़क हो पक्की या कच्ची 
वहीं अटक कर रह जाता  |
तब शूल लगते पुष्प जैसे 
रंगीन समा होता मन में 
सुबह शाम डूबा रहता 
वह अपने ही स्वप्नों में |
कभी प्रसन्न कभी गमगीन 
हुआ बेरंग जीवन 
वादा न निभाया प्रिया ने 
यही क्लेश  बेचैन किये जाता  |
यह उम्र ही है ऎसी
जिसकी शिकायत भी संभव नहीं 
 करें शिकायत तो किस से 
कोई अपना नहीं है जिस पर विश्वास
रखें |

 
 
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
असमंजस के भँवर में डूबी सशक्त प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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