भूल तुमने न की थी
शायद यही लिखा था प्रारब्ध में
किसी ने की थी बुराई
तुम्हारे नाम आई |
जीवन में कई पल आते
अनजाने में होते ऐसे
करता कोई कुछ है
भरता कोई और है |
मन पर सीधा प्रहार होता
शब्दों के विष बुझे बाणों का
तब कोई साथ नहीं देता
खुद ही सहना पड़ता |
क्या बच नहीं सकते प्रपंचों से
क्यों नहीं ? रहें तटस्थ यदि
चलें निश्प्रह हो कर
दुनिया के छल छिद्र से दूर|
जितनी सावधानी से
सतर्क हो कदम फूँक कर रखोगे
दुनिया के पंक से दूर रहोगे
समय की कीमत समझोगे |
आशा
सौ टका खरी बात ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
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