दोनो ओर के रिश्ते
धन और ऋण से होते
पर जताते नहीं कभी
वे कैसे होते |
हैं सतही या खून के
जब आवश्यकता होती
तभी दिखाई देते
समय पर पहचाने जाते |
कभी विरोधाभास होता दौनों में
कमी उजागर हो जाती
जब बरता जाता दौनों को
हैं इतने नाजुक कच्चे सूत से |
इन्हें निभाना है एक कला
अधिकाँश होते अनजान
कुछ गिने चुने लोगों के सिवाय
वे ढोल पीटना जानते |
रिश्ते की नजाकत
जब नहीं समझते
कहाँ तक सोचें कितना निभाएं
वाडे निभाएं जान से ज्यादा
बरसाती मेंढक से नहीं |
वही सही रिश्ते निभा पाते
अपने पराए का भेद समझाते
बुरे वक्त में साथ रह हिम्मत दिलाते |
आशा
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंThanks for the comment sir
जवाब देंहटाएंजो वक्त पर काम आयें वही रिश्ते सच्चे होते हैं फिर वे चाहे खून के हों या आभासी ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएं