सुहानी रात ही में
वह खोजाता
सुकून ह्रदय का
जब देखता
आसमान का चाँद
रहा चमक
पूर्णिमा की चांदनी
चमकाती है
हर कण धरा का
आधी रात में
जब सभी सोजाते
वह आनंद लेता
चाँद की किरणों का
चन्द्र किरणे
अटखेलियाँ करतीं
केशों की लटें
चूमलेतीं आनन
खेल प्रिय था
दिल की धड़कन
बढ़ने लगीं
चन्द्र किरणें लौटीं |
आशा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (09-07-2021) को "सावन की है छटा निराली" (चर्चा अंक- 4120) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
Thanks for the information of post
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवाह ! सुन्दर प्रस्तुति ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंThanks for the comments
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