मनमोहिनी
देखी कंचन काया
आकृष्ट हुआ
मन की आवाज ने
उकसा कर
हाल बेहाल किया
किसी से पूंछा
ये पुष्प है कहाँ का
उत्तर आया
इस जहां का नहीं
चंचल हुआ
किसी ने दी दस्तक
दरवाजे पे
पहचान हो गई
बरसों बाद
यूँही बैठे धूप में
जानना चाहा
कब मिले थे
वह भी भूली न थी
कहने लगी
जब से देखा तभी
उत्तर सुन
मन चंचल हुआ
आशा
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंअरे वाह ! बुद्धि और सौन्दर्य का अद्भुत संगम ! बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |