जब मैं छोटा बच्चा था
माँ का बहुत लाडला था
पर बहुत शरारत करता रहता
कई व्यवधान खड़े करता था |
जब भी कहीं जाना होता
किसी भी बात पर रूठ जाता
जब तक बात पूरी न हो
रोना गाना चालू रहता था |
कोई कब तक सहन करता
पर माँ ही एसी थी जो
बड़े प्यार से समझाती
जब पानी सिर से ऊपर जाता
डाट का सहारा लेती थी |
समय है बड़ा अमूल्य
यह बार बार समझाती थी
समय का मूल्य बताती थी
मेरी समझ से सभी बाहर होता|
मनमानी करना न छोड़ पाया
मेरी जिद की जब अति हो जाती
माँ को स्कूल पहुँचने में देर होती
कभी लाल निशान लगता चेताया जाता
कभी अवकाश लेना पड़ता |
तब माँ का क्रोध बढ़ जाता
दस दस बातें जब सुनती
सहन नहीं कर पाती थी
अश्रु से भरी आँखें ले कर
बहुत उदास घर पर आती थी |
मुझे प्यार से समझाती
वादा कहना मानने का
जिद न करने का लेती
फिर ममता से गले लगाती थी |
जब कभी मैं उनकी जगह
खुद को रखकर सोचता हूँ
अपनी गलती को महसूस करता हूँ
पर समय तो लौटता नहीं पीछे
किसी तरह यादों को बमुश्किल समेटता हूँ |
आशा
सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंबचपन का नटखटपन यही होता है ! इन सारी बातों का मूल्य बड़े होने के बाद ही पता चलता है ! सुन्दर रचना !
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