जीवन है फूलों की
डाली
मधुर सुगंध बिखेरती
लहराती बल खाती
मंद वायु के झोंकों संग|
धूप से फूल कुम्हलाते
झरने लगते होते ही वय पूर्ण
जितने समय भी झूलते
आनन्द पूरा उठाते |
उस डाली पर फूलों के जीवन का
उनके योवन का
फलते फूलते प्रसन्न
रहते
अपनी संतति देख कर |
जीवन है भेट वही
जो मिली मनुज को सृष्टि से
हैं संतुष्ट दोनो अपने जीवन से
देखे सभी मौसम पूरी शिद्दत से
दौनों फूले फले जिन्दगी को न भूले
देखी समानता दौनों
में
डाली पर फूल और मानव जीवन में |
आशा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (25-08-2021) को चर्चा मंच "विज्ञापन में नारी?" (चर्चा अंक 4167) पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Thanks for the information of the p o st
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 25 अगस्त 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
Thanks for the information of the post
हटाएंजीवन गुलाब के फूलों सी... गुलाब कहते कांटों का स्मरण स्वतः होने लगता है
जवाब देंहटाएंसादर
उम्दा रचना
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंविभा जी टिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद |
बहुत सुन्दर सार्थक समानता दोनों में ! बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद सदा जी टिप्पणी के लिए |