जल प्रपात
लगे मन मोहक
देख दूर से
भीड़भाड़ में
सुकून खोजूं कैसे
मन न मिले
नहीं विराम
जीवन को मिला है
अब तक भी
संध्या होगई
रात्री ने पंख फैला
किया आगाज
सारा झमेला
उलझा अबतक
सुलझा नहीं
कितने पंथ
टकराए भीड़ में
अकारण ही
झगडा टंटा
है रास नहीं आता
शोभा न देता
सारा झमेला
इतना फैला कैसे
मालूम नहीं `
नकारा नहीं
बढ़ावा भी दिया है
बड़े प्यार से
मन बढ़ा के
उत्साहित किया है
सब ने उसे
बड़े प्यार से
पूरे अधिकार से
समझाया है
आशा
सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंसुन्दर हाइकु !
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