है
मुझे
लगाव
तुम से ही
किसी से नहीं
यह मैने देखा
यह किस कारण
सोच पाती किस तरह
अब यही सोचना होगा
हो
तुम
मेरे ही
न किसी का
अधिकार है
तुम्हारे ऊपर
तुम उपहार नहीं
जो दिए जाओ उसको ही
हैं
यह
सृष्टि का
उपहार
तुमने पाया
बहुत खुशी से
अपनाया है उसे
समग्र ही मनोयोग से
आशा
सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंबहुत सुन्दर सृजन !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |