10 सितंबर, 2021

है अस्तित्व तुम्ही से मेरा


 

है अस्तित्व तुम्ही से मेरा


जब भी खोजा जानना चाहा


तारों भरी रात में खुद को


पहचानना चाहा |


ढूँढूं कैसे अपना घर वहां


 कोई पहचान न  छोडी तुमने


कैसे पाऊंगी उसे वहां |


तुम हो दीपक मैं बाती

 

फिर भी स्नेह बिना


 खुद को अधूरा पाती


 आसपास ही खोजती रही उसे |


 खोज पाती यदि उसको

   

तनिक भी जीती यदि रौशनी करती

   

 फिर लौ धीमी होती जाती 

मंद हवा का झोका आता

साथ साथ लहरारी उसके 


जब वायु वेग तीव्र होता


लौ अचानक भभकती बुझने लगती 

यही अंतिम पल होते मेरे अपने  

इस भवसागर में  

मैं तुम को याद करती भूल पाती

 

 लेती अंतिम साँस जब


ॐ निकलता मुंह से


 फिर न लौट पाती |

आशा

6 टिप्‍पणियां:

Your reply here: