लगती बड़ी सुहानी विभावरी
चमकते दमकते छोटे बड़े
तारों के संग व्योम में
धवल चन्द्र की रौशनी भी संग होती |
जब नीला आसमान होता
संध्या होती अंधियारा बढ़ने लगता
तारे पूरे जोश से आते
लेकर सब छोटे बड़ों को संग |
कभी जब काले भूरे बादल आते
लुका छिपी का खेल होता
पर अधिक समय नहीं
जल्दी से बदरा आगे बढ़ जाते |
फिर आसमा में एकाधिकार होता
चमकते दमकते तारों का |
उनकी रौशनी इतनी होती
स्पष्ट मार्ग दिखाई देता पथिकों को
खाली सड़क पर विचरण का
अनूठा ही आनंद होता |
आधी रात गुजरते ही
खिलने लगते पुष्प पारिजात के
भोर की बेला में झरने लगते
श्वेत चादर बिछ जाती वृक्ष तले |
दृश्य बड़ा मनोरम होता
मन को सुकून से भर देता
महक भीनी भीनी सी
दूना कर देती विभावरी में |
आशा
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन आदरणीय मैम!
जवाब देंहटाएंप्रकृति का सुंदर चित्रण!
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंThanks for the information of the post
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर ! यहाँ तक महक चली आ रही है पारिजात के पुष्पों की ! सार्थक सृजन !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |