11 सितंबर, 2021

विभावरी


 

लगती बड़ी सुहानी विभावरी 

चमकते दमकते छोटे बड़े

तारों के संग व्योम  में  

धवल चन्द्र की रौशनी भी संग होती |

जब नीला आसमान होता

संध्या होती  अंधियारा बढ़ने लगता

तारे  पूरे जोश से आते

 लेकर सब छोटे बड़ों को संग |

कभी जब काले भूरे बादल आते

लुका छिपी का खेल होता

पर अधिक समय नहीं

जल्दी से बदरा आगे बढ़ जाते |

फिर आसमा में एकाधिकार होता

चमकते दमकते तारों का |

उनकी रौशनी इतनी होती 

स्पष्ट मार्ग दिखाई देता पथिकों को  

खाली सड़क पर विचरण का

अनूठा ही आनंद होता |

आधी रात गुजरते ही

खिलने लगते पुष्प पारिजात के

भोर की बेला में झरने लगते

श्वेत चादर बिछ जाती वृक्ष तले |

दृश्य बड़ा मनोरम होता

मन को सुकून  से भर देता

महक भीनी भीनी सी

  दूना कर देती विभावरी में |

आशा

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर सृजन आदरणीय मैम!

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  2. प्रकृति का सुंदर चित्रण!

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  3. बहुत ही सुन्दर ! यहाँ तक महक चली आ रही है पारिजात के पुष्पों की ! सार्थक सृजन !

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  4. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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