सुख करता दुःख हरता
प्रथम पूज्य गौरी
नंदन
लम्बोदर विघ्न हरता |
है मूषक वाहन
तुम्हारा
रिद्धि सिद्धि के
स्वामी
लाभ शुभ संतति के
जनक
सब की विनती सुनते स्वामी
|
उसका हल पलों में
करते
अरज सुनों मेरी कभी तो ध्यान दो
मैं आई शरण तुम्हारी
दान बड़ा कोई न चाहूँ
दृष्टि तुम्हारे उपकार की ही है पर्याप्त |
मुझे धन धान्य की चाह
नहीं
सर पर वरद हस्त तुम्हारा चाहती
सारे कार्य मेरे होते सफल
सरल सहज तुम्हारे आने से |
तुम्हारे आशीष से बढ़ा आत्मविश्वास मेरा
दृढ संकल्प से सभी
कार्य
होते संपन्न विधि विधान से
घर भरा पूरा है सुख
सम्पदा से |
हे मोदकप्रिय प्रथम
पूज्य लम्बोदर
मोदक भोग लगाया मैंने
की आरती
सबकी अरज सुनने वाले
नमन तुम्हें हे
सिद्धि विनायक |
गजानन गणेश जल्दी से
आओ
बहुत इंतज़ार अब सहन न
होता
सूना लगता स्थापना
स्थल तुम्हारा
हे एक दन्त तुम्हारे बिना |
आशा
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१०-०९-२०२१) को
'हे गजानन हे विघ्नहरण '(चर्चा अंक-४१८३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
Thanks for the information of the post
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुंदर लेख
जवाब देंहटाएंधन्यवाद हरीश जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंगणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंHappy ganesh chaturthi
जवाब देंहटाएंवरदाता गणपति बप्पा की सब पर कृपा बनी रहे ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |