17 सितंबर, 2021

मन क्या सोच रहा


 

                जब भी सोचा सोचती ही रही

               अवसर न मिला कुछ कहने का

मन ही मन घुटती रही

बेचैनी बढ़ती रही कुछ कह न सकी |

 उमस बढी मन के किसी कौने में 

स्थिति बद से बत्तर हुई  

 किससे मन की बात कहूँ  

 मैं निर्णय न कर  पाई  |

गिरह मन की न  खोल पाई

पर घुटन कब तक सहती

कोई न मिला जिससे कुछ बाँट पाती

अब मन की बेचैनी सहन न होती  |

उलझनें  बढीं बढ़ती गईं

जीना दुश्वार हुआ पर

 समाधान नहीं हो पाया   

कोई दिल से  अपना न हुआ

जिससे बाँट पाती उलझनों को |   

 कुछ तो  हल्का मन होता

 बोझ न उस पर रहता

पर इतनी समझ कहाँ दौनों में  

 ऐसा कब तक चलता |

दौनों ने राह  खोजी अपनी   

 और चल दिए अलग हो

  अपनी  अपनी राह पर

  मन में मलाल लिए |

          अब भी कभी जब सोचती हूँ

      मेरा मन नहीं मानता 

          क्या दौनों का निर्णय सही था

                मन तो न टूटता घर  न उजड़ता |

                 आशा 

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