15 सितंबर, 2021

हो तुम मेरे ही कान्हां


 हो तुम मेरे ही  कान्हां

 यशोदा नंदन नन्द जी के दुलारे

राधा रानी शक्ति तुम्हारी

 लिए काली कमली और बाँसुरी साथ में  |

शीश पर मोर मुकुट सजा है

पीली कछोटी बंधी  कमर में

मुंह पर माखन लगा है

ऐसी छबि करती तुम्हें जुदा सब से |

अलग ही है पहचान तुम्हारी

बाल सुलभ चंचलता नयनों में

यही अदा प्यारी है मुझको

मैं हो जाऊं  तुम पर न्योछावर  |

                  ना मैं मीरा ना में राधा

                 रहूँ तुम्हारी अनुयाई  सदा

                 ऐसा ही भोला बचपन 

                    मुझे बड़ा भाया है 

                   क्यों न मैं जी लूँ उसे 

                  दिन भर धेनु चराऊँ 

                शाम पड़े गोधूली बेला में 

                   लौट कर घर आऊँ |  

                        आशा 


   

शा 

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा 16.09.2021 को चर्चा मंच पर होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 16 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  3. कान्हा की हर छवि मनमोहक ! बहुत सुन्दर !

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