12 नवंबर, 2021

बंधन अनमोल



बंधे रहना किसी के साथ

जीवन में इतना सरल नहीं

अपने आप को किसी के

 अनुसार ढालना  पड़ता है |

यदि अड़े रहे अपनी बातों पर

मझधार में हाथ छूट जाता

कोई नहीं सोचता कि किनारा

कहाँ होगा मिलेगा या नहीं |

पर तब तक देर हो चुकी होगी

समय लौट कर न आएगा

मन चाह बहुत दूर छूट जाएगा

मन को भारी कर जाएगा |

बंधन समाज के हों

या खुद के मन के

होते हैं बड़े अनमोल

यदि टूट गए फिर से

जुड़ नहीं पाते |

कोशिश जोड़ने की भी की यदि

मन में गठान रह ही जाती है

यह इतना त्रास देती है कि

धीरे  धीरे नासूर बन जाती है |

जिसे सहना सरल नहीं होता

जीना तो पड़ता है पर

मर मर कर जीना भी

क्या जीना है |

आशा 

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