16 नवंबर, 2021

मन बावरा

 


मन बावरा माना ना

कुछ भी जानना चाहा ना  

क्या कहाँ चाहिए उसे

उसने पहचाना ना  |

यहीं मात खाई उसने  

जीवन में सबसे हारा

 कभी सफल न हो पाया 

 कितनी भी  कोशिश की उसने|

यही हार दुःखदायी हुई

कल के सपने धराशाही हुए  

 गिर कर चकना चूर हुए

कोई स्वप्न साकार न हुआ |

मन को बहुत संताप रहा  

 कुछ भी नहीं वह कर सका

सफलता पाने के लिए

जीवन सफल बनाने के लिए |

 बस यही दुःख उसे

सालता रहा जीवन भर

क्या कारण रहा होगा

जीवन असफल होने  के लिए |

उसकी जड़ तक

 वह पंहुंच न सका

बावरा था बावारा ही रहा

कुछ नया हांसिल न हुआ |  

आशा

 

 

 

 

 

 


7 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(१८-११-२०२१) को
    ' भगवान थे !'(चर्चा अंक-४२५२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुप्रभात
      आभार अनीता जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए चर्चा मंच के आज के अंक में |

      हटाएं
  2. मन बावरा जानें सब पर मानें ना
    यथार्थपरक रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात
    धन्य्वाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  4. जीवन में कभी कभी ऐसा समय भी आता है ! यथार्थपरक एवं भावपूर्ण प्रस्तुति !

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: