शमा रात भर जलती रही
कब सुबह हुई जान न पाई
जब उनीदी आँखों से देखा
स्नेह अंत के कगार पर देखा |
मन को बड़ा संताप हुआ
क्या यह मेरी भूल न थी
अब जान गई हूँ
अपनी भूल पहचान गई हूँ |
यदि थोड़ा ध्यान धरा होता
तू भी जलती रहती रात भर
किसी को कुछ कहने का
अवसर न मिलता |
पतंगों के उत्सर्ग की व्यथा देखी
मन क्षोभ से भरा
अपनी व्यथा किससे कहूँ
समय बीता बात गई
कुछ करने का समय न रहा शेष
मैं क्या करू|
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए ओंकार जी |
लाज़वाब
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद स्मिता टिप्पणी के लिए |
रात भर तो जली शमा ! और क्या करतीं आप ? क्षोभ किस बात का ! उसने अपना फ़र्ज़ पूरा किया रात भर जल कर ! पतंगों को तो प्राण उत्सर्ग करने ही होते हैं ! दीवाने जो ठहरे ! सुन्दर रचना !
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