28 नवंबर, 2021

खुद कुछ कर न पाओगे

 

सागर सी  गहराई तुम में

 डूबेतो निकल न पाओगे

हर  बार हिचकोले खाओगे

घबराओगे बेचैन रहोगे |

भवर में गोल गोल घूमोंगे  

डुबकी  लगाओगे

 फिर भी बाहर न आ पाओगे |

खुद तो अशांत होगे

दूसरों को भी उलझाओगे

बाहर आकर शान बताओगे

मन की शान्ति का दिखावा करोगे |

यह दुहेरी जिन्दगी जीने का

क्या लाभ ना तो  मन को शान्ति मिलेगी

न पार उतर पाओगे |

भवसागर में यूंही

भटकते रह जाओगे

कितनों के आश्रित रहोगे

खुद कुछ न कर पाओगे |

आशा

4 टिप्‍पणियां:

Your reply here: