सागर सी गहराई तुम में
डूबेतो निकल न पाओगे
हर बार हिचकोले खाओगे
घबराओगे बेचैन रहोगे |
भवर में गोल गोल घूमोंगे
डुबकी लगाओगे
फिर भी बाहर न आ पाओगे |
खुद तो अशांत होगे
दूसरों को भी उलझाओगे
बाहर आकर शान बताओगे
मन की शान्ति का दिखावा करोगे |
यह दुहेरी जिन्दगी जीने का
क्या लाभ ना तो मन को शान्ति मिलेगी
न पार उतर पाओगे |
भवसागर में यूंही
भटकते रह जाओगे
कितनों के आश्रित रहोगे
खुद कुछ न कर पाओगे |
आशा
बढ़िया प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |