भोर का एकल सितारा
देता संकेत सुबह के आगमन का
रश्मियाँ धीरे से झाँकतीं देखती
वृक्षों की डालियों के बीच में छिप कर |
जब आतीं खुले आसमा में
अद्भुद आभा उनकी होती
सध्य स्नाना युवती सी
सजधज कर जब आसमा में विचरतीं |
बहुत आकर्षण होता उनमें
जो खींचता हर दर्शक को अपनी ओर
ये फैली होतीं जब वृक्षों पर
अद्भुद ही द्रश्य होता वहां का |
पेड़ के नीचे बिछी श्वेत पुष्पों की चादर
वहां से उठने न देती
मन हो जाता विभोर
कहीं जाना न चाहता वहां की शान्ति छोड़ |
खुद से वादा करती
प्रति दिन यहीं आऊंगी
सुबह की सैर के लिए
मौसम का नजारा देखूंगी जी भर कर |
आशा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
वाह ! मनभावन दृश्य प्रस्तुत करती सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए साधना |