१- जिन्दगी का भार यदि खुद का हो
सहा जा सकता है पर परिवार का क्या करें
उनकी समस्याओं से भरी बातों का
कोई अंत न हीं होता क्या करें |
२-सर छिपाने को यदि छत न हो
दो जून की रोटी यदि मयस्सर न हो
जियें तो कैसे जियें बातों से पेट नहीं भरता
कोई कार्य तो ऐसा हो व्यस्त रहने के लिए |
३-यह आर्थिक तंगी पहले न थी
अब सहनशक्ति पार कर गई
जीना हुआ दूभर अब तो
महंगाई हमें भी मात दे गई |
४-मेरा मन इतना कमजोर नहीं
कठिनाइयों से जो भय खाए
पर पतली कोई गली न मिली
उनसे बच कर निकल जाए |
५-इस मौसम में सर्द हवाएं तन मन दहलाएं
जलते अलाव तक ठण्ड कम न कर पाएं
आम आदमीं की कठिनाइयाँ बढ़ती जाएं
मन को बेकरार करती जाएं |
आशा
सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जौ
जवाब देंहटाएंजीवन के निर्मम यथार्थ को सटीक शब्दों में अभिव्यक्ति मिली ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |