30 दिसंबर, 2021

अकारथ जीवन


 

ना तो कोई रंग ना तरंग

इस अकारथ  जीवन में

बोझ बन कर रह गया है

व्यर्थ इस धरती पर पड़ा है |

है बेनूर जिन्दगी उसकी

कोई भाव जन्म न लेते

जो मन की खुशियाँ सहलाते

दो शब्द प्यार के बोल पाते |

यह बेरंग जिन्दगी है  कैसी

  एक बदरंग दाग हुई दुनिया में

कभी मीठे बोल न मुखरित होते

  मुख मंडल से उसके |

सदा जली कटी भाषा का प्रयोग

मन विदीर्ण कर जाता सब का

उसकी  कर्कश बोली से

सबका इतना ही है नाता |

छोटे बच्चे तक तरस जाते

 दुलार पाने को उसका 

उसके आते ही कौने में छिप जाते 

 सुई पटक सन्नाटा होता

मन  विक्षोभ से  भर जाता |

आशा

4 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |

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  2. मीठी बोली और सद्व्यवहार में कुछ खर्च नहीं होता लेकिन सबके प्यार से आपको मालामाल कर जाता है ! जो इतना भी नहीं कर पाते उनका जीवन सच में भार के सामान है ! सुन्दर रचना !

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  3. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं

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