प्रभु की महिमा अधूरी रह जाती
बिना चुने हुए अल्फाजों के
गीत तो गाए जाते पर
बिना धुन और लय ताल के |
सतही यह गीत संगीत ताल
दिल से जब शब्द न निकले
सभी दिखावे से लगते
जब मन को न छू पाते |
खिलती कलियों का नेह निमंत्रण
फिर भी आकर्षित करता
फूलों का रंग अपनी ओर खीचना चाहता
और मैं खिचता चला जाता वहां |
मुझे आभास ही नहीं होता कब
सुगंध के सहारे मैं पहुंचता वहां
इस दृश्य का आनंद लेने |
फुलों पर उड़ते भौंरे और तितलियाँ
नाचते थिरकते मोरऔर मोरनी संग
ताल में तैरते श्वेत बकुल और सारस
अपनी ओर करते आकृष्ट मुझे
समा रंगीन होता उस बगिया का |
रंगबिरंगे परिधान में सजा बचपन
दौड़ लगाता जब हरे भरे मैदान में
तरह तरह की स्वर लहरी गूंजती
अपनी ओर आकृष्ट करतीं मुझे |
मन चाहता कुछ देर बैठूं यहां
जब हाथों में हो कैनवास ,कूची
और विविध रंगों का खजाना
दृश्य को उकेर कर सजालूँ अपने उर में |
कुछ और की चाह नहीं है
ये पल यदि ठहर जाएं
भर लेता अपनी बाहों में
जीवन को सार्थक कर लेता |
चाहर पूरी हो जाती मेरी
फिर तुम्हारी महिमा गाता
मधुर स्वर लय और ताल में
मन खुश हो नाचने लगता |
आशा
क्या बात है ! हमारा मन भी मुग्ध होकर विचरने लगा आपके साथ !
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