19 दिसंबर, 2021

आत्मकथा पुष्प की




 दिन डाली पर झूल बिताया 

रात भर सोया चैन से 

सुबह  ओस से नहाया 

हुआ मुग्ध  अपने रूप रंग पर|

हुआ  जब समय डाल से बिछुड़ने का 

माली ने सजाया  सवारा

  मेरे श्वेत लाल  पुष्प गुच्छों को 

प्यार से दुलराया  फिर विदा किया |

अब मिला स्थान मुझे 

   गुलदस्ते के एक कौने में  

जो  गया एक हाथ से दूसरे  में  

पर मुझे सराहना कोई न भूला 

   महिमाँ  मंडन खूब  हुआ मेरा 

गर्व   हुआ अपने आप पर  |

कड़ी धुप सहन की फिर भी न मुरझाया 

किया सूर्य किरणों  से मुकाबला 

बचने में  खुद को सक्षम पाया 

मेरा मन बल्लियों उछला |

मैंने  माली का  धन्यवाद किया 

जिसने प्यार से पाला पोसा 

मुझे सक्षम बनाया

 अपने पैरों पर खड़ा किया |

 मुझे यहीं जीने का

 सच्चा  आनन्द मिला 

अपनी क्षमता जान सका   

खुद को पहचान सका |

जब  देखा शहीदों की अर्थी पर  सजा खुद को 

मन में   देश भक्ति जाग्रत हुई   

मेरा सही उपयोग देख  

मुझे  फिर से  बहुत  गर्व   हुआ |

आशा 






9 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (20-12-2021 ) को 'चार दिन की जिन्दगी, बाकी अंधेरी रात है' (चर्चा अंक 4284) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:30 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  4. सुप्रभात
    आभार रवीन्द्र जी मेरी रचना की सूचना के लिए चर्चा मंच पर |

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  5. सुंदर भावपूर्ण रचना।
    सादर।

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  6. पुष्प की आत्मकथा बहुत अच्छी लगी ! अति सुन्दर !

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