20 दिसंबर, 2021

फूल गुलाब का

                                                                                                                                  

                                         


                                         खिला गुलाब                                              

बाग़ में  डाल पर 

सोचता रहा 

उसके जीवन की 

 क्या कहती कहानी 

कभी कली रही थी 

पत्तों में छुपी 

पत्तियों  के कक्ष से 

झांकती कली 

खिली पंखुड़ी सारी 

फूल खिला है 

हुआ  लाल गुलाब 

वह अकेला  नहीं 

झूलता रहा

रक्षक रहे  पास 

बचाते रहे 

उसको  बैरियों से 

तितलियों की 

भौरों की छेड़ छाड़

उसे  भाती है 

प्यार दुलार उनका 

स्वीकार किया 

वायु बेग सहना 

भी सीख लिया 

 उससे बचने की 

कोशिश न की 

विरोध की क्षमता 

नहीं  है अब 

देख लिया  जीवन 

मन मुदित

हुआ जीवन पूर्ण 

प्रभु के  चरण में 

खुद को वहां    

  अर्पित कर दिया  |  

आशा 



7 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(21-12-21) को जनता का तन्त्र कहाँ है" (चर्चा अंक4285)पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      आभार कामिनी जी मेरी रचना को आज के चर्चामंच अंक में स्थान देने के लिए |

      हटाएं
  2. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं

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