जीवन में आती धूप छाँव
सुबह और शाम
कोई परिवर्तन न देखा
यही क्रम जारी रहा जीवन भर |
आते व्यवधानों से जिन्दगी में
चलना सीखा काँटों से बच कर
ऊबड़ खाबड़ कन्टकीर्ण सड़क पर
जिसे पार करना सरल न था |
मुझे ठोकर लगी जब
उसी ने सहारा दिया
गिरने पर सम्हाला
बड़े जतन से उठाया |
मुझे गंतव्य तक पहुंचाया
कोई तो है मददगार मेरा
वही मेरा हमराज हुआ
बोझ मन का कम हुआ |
जब वक्त पर आ खड़ा हुआ
बैसाखी बन कर सहारा दिया
मुझमें साहस का संचार हुआ
खुद पर विश्वास जाग्रत हुआ |
मेरे अधूरे जीवन में बहार आई
उसकी जरासी सहायता से
जिन्दगी मेरी सवर गई
उसके हाथ बढाने से |
अधूरे जीवन में परिवर्तन आया
सुबह और शाम में
धुप और छाँव में स्पष्ट
अंतर नजर आया |
आशा
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमन में विश्वास हो तो मुश्किल समय में सहारा बन कर कोई न कोई मददगार ज़रूर आ खड़ा होता है ! सुन्दर सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sadhna
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