16 दिसंबर, 2021

जीवन कैसा हो


 


हंस कर काटें पल दो पल

जीवन में और रखा क्या है

जिन्दगी की राह भरी है कंटकों से

 बिना चुभे रह नहीं सकते |

किसी का नेह भी

लगता है खारा नमक सा

किसी के कटु वचन भी

मीठे लगते शहद से |

  है यह  कैसी विडम्बना

मेरी समझ से परे है

जीवन हुआ है एक रस

उसमें जहर भरा है |

कभी खुशियों की तमन्ना थी जहां 

हुई  काफूर वह भी कहीं  

बरसों बाद उसके दर्शन हुए 

 सुकून मिला है मन को  |

वृन्दावन में मोहन की बाँसुरी

राधा रानी का नृत्य संगीत

गलियों में दूध दही की महक

पहुँचने लगी है ग्वालवालों  तक |

शायद जीवन खुश रंग हो जाए

फिर से उसमें बहार आए

यही चाह है मन की

कुछ और अधिक की चाह नहीं |

आशा 

 

 

 

 

  

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुख दुःख, आशा निराशा, मीठा तीखा सब जीवन के ही विविध रंग हैं ! जब जो मिल जाए सहज स्वीकार ही एकमात्र विकल्प है ! सार्थक चिंतन !

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  2. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं

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