हंस कर काटें पल दो पल
जीवन में और रखा क्या है
जिन्दगी की राह भरी है कंटकों से
बिना चुभे रह नहीं सकते |
किसी का नेह भी
लगता है खारा नमक सा
किसी के कटु वचन भी
मीठे लगते शहद से |
है यह कैसी विडम्बना
मेरी समझ से परे है
जीवन हुआ है एक रस
उसमें जहर भरा है |
कभी खुशियों की तमन्ना थी जहां
हुई काफूर वह भी कहीं
बरसों बाद उसके दर्शन हुए
सुकून मिला है मन को |
वृन्दावन में मोहन की बाँसुरी
राधा रानी का नृत्य संगीत
गलियों में दूध दही की महक
पहुँचने लगी है ग्वालवालों तक |
शायद जीवन खुश रंग हो जाए
फिर से उसमें बहार आए
यही चाह है मन की
कुछ और अधिक की चाह नहीं |
आशा
सुख दुःख, आशा निराशा, मीठा तीखा सब जीवन के ही विविध रंग हैं ! जब जो मिल जाए सहज स्वीकार ही एकमात्र विकल्प है ! सार्थक चिंतन !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |