01 जनवरी, 2022

आज का भारत


 

 जंगल में दंगल हुआ

वर्चस्व की छिड़ी लड़ाईं

सब ने अपने पक्ष रखे    

 एक भी सही ढंग से

रख न सका अपने पक्ष को |

यही हाल है आज  

भारत में प्रजातंत्र का

हर व्यक्ति खुद को नेता कहता 

बड़ी बड़ी बातें करता |

जिसमें हो दम ख़म  

उसका ही अनुसरण करता 

खुद का कोई नियम धर्म नहीं

ना ही कोइ विचार धारा|

खुद का कोई सोच नहीं 

दो पल्लों की तराजू में लटका 

यही सोचता रहता 

इधर जाऊं या उस ओर |

कहीं भी ईमानदारी नहीं 

सब अपने घर भरने में लगे हैं

परोपकार का दिखावा करते 

पर मन में बरक्कत नहीं |

टेबल ऊपर से पाक साफ 

नीचे से लेन देन चलता 

भीतर से उसे

 खोखला कर देता  |

चंद लोगों के पास ही 

 धन की भरी तिजोरी है 

आम आदमी उलझा है  

दो जून की रोटी में | 

बेरोजगारी ने सर उठाया है 

एक ऑफिस से दूसरे में

युवा मारे मारे फिरते है  

कोई आय का स्रोत नहीं 

जिसके सहारे जी पाएं  |

जब कोई ठौर भीं न  दीखता

घिर जाते बुरी संगत में 

जब नशे में झूमते घर आते 

आए दिन  घरेलू हिंसा दोहराते |

आशा 

आशा 

2 टिप्‍पणियां:

  1. सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार और समाज में व्याप्त बदहाली का सटीक चित्रण करती सार्थक रचना ! बहुत बढ़िया !

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  2. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं

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