02 जनवरी, 2022

मन खिन्न हुआ


तुम दीपक मिट्टी के बने 

मैं बाती तुम्हारी सहचरी

जन्म जन्म की साथी

मेरा साथ स्नेह वायू का

तुमको लगता प्यारा परिवार |

 तुम अकेले क्या कर लेते

बिना हमारे साथ के

फिर भी कोई महत्व न देते

क्या यह गलत नहीं ?

हमारी भी चाहत है

कोई हमें भी मान दे

आदर सम्मान दे

 तुम्हारे साथ में |

कभी यही सोच

मन को ठेस पहुंचाता

इतनी तंगदिल

मैं हुई कैसे ?

मन में ख्याल आता

क्या हमारा कोई कर्तव्य नहीं

अधिकार कैसे बड़ा हुआ कर्तव्य से

मन खिन्न हो जाता थोथे उद्गारों से 

अपने तुच्छ विचारों से  |

आशा 

 

5 टिप्‍पणियां:

  1. बाती का आत्ममंथन अच्छा लगा ! सुन्दर रचना !

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    1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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    2. सुप्रभात
      धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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  2. उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्य्वाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |

      हटाएं

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