20 जनवरी, 2022

कब से बैठी राह निहारूं


 कब से बैठी राह निहारूं

 तुम्हारे आने की  

नयन थके द्वार देखते

हर आहट पर चोंक जाते |

 जाने तुम कब आओगे

कब तक तरसाओगे

ऐसा क्या गुनाह किया मैंने

जिसकी मुझे खबर नहीं |

यदि बता दिया होता

कुछ हल निकल ही आता  

अपनी त्रुटि जान  क्षमा मांगने से

 मन का बोझ  कम हो जाता |

चाहत ने मुझे डुबोया है

मुझे दुःख इस बात का है

 कि तुम भी  नहीं जानते   

किससे क्या अपेक्षा रही मेरी |

मुझे खुद ही पता चल जाता

जरासा इशारा तो किया होता

मैंने  अपनी कमियों को

 सुधार लिया होता|

 मैं अपने को अपराधी न समझती 

हुई जो भूल अनजाने में   

 उसके लिए ही क्षमा प्रार्थी हूँ

मैं सम्हल सम्हल कर पैर रखूँगी  |                                            

 मन की बात क्यों समझ न पाई  

तुम्हारी हर बात आँखे बंद कर मानना 

क्यूँ न हर बात में सहमती जताना

यही मेरी सजा होगी |

 अब जान लिया है मैंने

मेरा खुद का  कोई वजूद नहीं है

 पर तुम्हारे बिना भी मेरा

अपना कोई नहीं है |

आशा 



 


 

5 टिप्‍पणियां:

  1. तुम्हारी हर बात आँखे बंद कर मानना

    क्यूँ न हर बात में सहमती जताना

    यही मेरी सजा होगी |

    अब जान लिया है मैंने

    मेरा खुद का कोई वजूद नहीं है

    पर तुम्हारे बिना भी मेरा

    अपना कोई नहीं है |
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद ज्योति जी टिप्पणी के लिए |

      हटाएं
  2. मन की हलचल की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ! खूबसूरत रचना !

    जवाब देंहटाएं
  3. धन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं

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