वीणा वादिनी
वर दे ध्यान तेरा
कमलासनी
सिंह वाहनी
ऊंचा भवन तेरा
कैसे पहुंचूं
मैं मीरा नहीं
केवल आराधना
उद्देश्य मेरा
चाहिए मुझे
तुम्हारा उपकार
अनजाने में
हे महावीर
की अरदास तेरी
करो सफल
भवसागर
पार लगाते चलो
मस्तक झुके
परमात्मा का
सर पे हाथ होना
सौभाग्य मेरा
मुरली वाले
मोहा तुमने मुझे
मैं वारी जाऊं
भोले भंडारी
है त्रिशूल हाथ में
शीश पे गंगा
आशा करती
भक्ति में डूबी रही
सुख तो मिले
आशा
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-01-2022) को चर्चा मंच "नसीहत कचोटती है" (चर्चा अंक-4300) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
स्द्प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार शास्त्री जी मेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए |
वाह वाह ! बहुत सुन्दर हाइकू !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |