04 जनवरी, 2022

प्रभु वंदन


 

वीणा वादिनी

 वर दे ध्यान तेरा 

कमलासनी  

 

सिंह वाहनी

ऊंचा भवन तेरा

कैसे पहुंचूं

 

मैं मीरा नहीं

केवल आराधना

उद्देश्य मेरा

 

 चाहिए मुझे

तुम्हारा उपकार

 अनजाने में

 

हे महावीर

की अरदास तेरी

करो सफल

 

भवसागर

पार लगाते चलो

 मस्तक झुके

 

 

परमात्मा का

सर पे  हाथ होना

 सौभाग्य मेरा


मुरली वाले 

मोहा तुमने मुझे 

मैं वारी जाऊं 


भोले भंडारी 

है त्रिशूल हाथ में  

शीश पे गंगा 

 

आशा करती 

भक्ति में डूबी रही 

सुख तो मिले  


आशा   

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-01-2022) को चर्चा मंच      "नसीहत कचोटती है"   (चर्चा अंक-4300)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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  2. स्द्प्रभात
    आभार शास्त्री जी मेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए |

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  3. वाह वाह ! बहुत सुन्दर हाइकू !

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  4. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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